[जलती स्त्री ] कविता - मर्यादा भंग और कलियुग

मर्यादा पर न्याय - त्रेता से कलियुग का अंतर | कविता - मर्यादा भंग और कलियुग

जलती स्त्री 


जल गयी कई सीतायें
कहाँ हैं उनके राम
ढूंढ निकाला जिसने सीता को
कहाँ है वो हनुमान।

अक्षय कुमार को मारा जिसने
किया समंदर पार
आज वानर नहीं इंसान है वो
जो खुद है प्रशाशन का शिकार।

आज धरती नहीं डोल रही
सीता कर रही चीत्कार
ग्रास अग्नि का बन रही
मानवता पर है ये प्रहार।

दौड़ रहे सगे सम्बन्धी
न्याय की लगाते गुहार
आज बन गए कैसे बन्दी
भरते क्यों नहीं हुंकार।

पुल बना गढ़ लंका पर
पाया था जिसने विजय
वो राम आज सब जानकार
किस बात पर कर रहे संशय।

आज गर एक होते तो
सीता को जा वही बचाते
अब तो हैं कई सारे राम
कोई कानून ही बना दें।

सिखा मर्यादा सीता को
खुद मर्यादा भूल गए
शायद वो सीता बन गयी
वो राम बनना भूल गए।

ये युग है कलि का
स्त्री का हो रहा, मर्यादा भंग
विवश है आज न्यायपालिका
सामने खड़ा स्वयं रावण।

रावण ने भी सीता को
अशोक वाटिका में छुआ नहीं
पर आज की सीतायें तो
घर पे अपने सकुशल नहीं।

           - साकेत सिंह

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