शब्दसार
शब्दसार
दोस्त कहता है :
सस्ता नशा करने लगे हो
ये जो कविता लिखने लगे हो
क्या सच में दिल टूट गया
या जीवन का सच पता चला।
मैं कहता हूँ :
कहा -सुनी जैसे एक जंग
ख्वाहिशें हैं जैसे मृदंग
कुछ शब्दों की होली
कहीं अर्थी कहीं डोली।
भाई सा दोस्त है मेरा
ये ताल जो उसने छेड़ा
बाते हैं जो इन किस्सों में
कहीं वो भी है इनके हिस्सों में।
सुजीत सुगम सरगम
अहं आखेट दुर्गम
बेमेल अनजानी मिसाल
चले ये सालो साल।
(A Tribute to my friend..)
दोस्त कहता है :
सस्ता नशा करने लगे हो
ये जो कविता लिखने लगे हो
क्या सच में दिल टूट गया
या जीवन का सच पता चला।
मैं कहता हूँ :
कहा -सुनी जैसे एक जंग
ख्वाहिशें हैं जैसे मृदंग
कुछ शब्दों की होली
कहीं अर्थी कहीं डोली।
भाई सा दोस्त है मेरा
ये ताल जो उसने छेड़ा
बाते हैं जो इन किस्सों में
कहीं वो भी है इनके हिस्सों में।
सुजीत सुगम सरगम
अहं आखेट दुर्गम
बेमेल अनजानी मिसाल
चले ये सालो साल।
(A Tribute to my friend..)